भारत मे आपातकाल की सम्पूर्ण कहानी

written by- sonali kesarwani

इन्दिरा गाँधी का आम प्रधान-मंत्री से खास प्रधान-मंत्री बनने तक का सफर 

 1966 मे लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु के बाद इन्दिरा गाँधी जी ने प्रधान-मंत्री पद का कार्य भार सम्भाला। 1967 मे प्रधान-मंत्री के लिये चुनाव हुआ चुनाव मे फिर congress की सरकार बनी लेकिन बहुत ही कम वोट मिले थे। कुछ  राज्यो मे non- congress की सरकार बनी। उस समय मोरारजी देसाई उप-प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री दोनो थे। 1967 से 1969 तक किसी तरह सरकार चलती रही फ़िर राष्ट्रपति के चुनाव का समय आया उम्मीदवार के रूप मे नीलम संजीवा रेड्डी और वी वी गिरी को खड़ा किया गया। चुनाव का समय ही चल रहा था कि इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई जी से वित्त मंत्री पद से इस्तीफा देने को कहा उनका कहना था कि  मोरारजी देसाई जी के कार्य से सरकार संतुष्ट  नही थी और वे सरकार के अनुकूल काम नही कर रहे है। मोरारजी देसाई जी ने वित्त मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया

और उधर वी वी गिरी राष्ट्रपति का चुनाव जीत गये। और उसी दौरान इंदिरा गांधी ने बैंको के राष्ट्रीयकरण के संबंध मे एक अध्यादेश लेकर आई जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। 

12 नवंबर 1969 को इंदिरा गांधी को कांग्रेस पार्टी से निकाल दिया गया। पार्टी से निकाले जाने के बाद इंदिरा जी ने किसी तरह D.M. और कुछ नेताओ की मदद से अपनी सरकार चलाई । लोकसभा का चुनाव 1972 मे होने वाला था जिसे इन्दिरा गांधी जी ने पहले कराने का फ़ैसला लिया जिसका उन्हे फायदा भी हुआ।  फायदा ये हुआ कि केन्द्र मे चुनाव होना था तो जो राष्ट्रीय मुद्दे थे वो केंद्र मे ही रह गये क्षेत्रीय मुद्दों का कोई मतलब हुआ नही जिससे उनकी जीत होनी पक्की थी । 1971 मे चुनाव हुआ एक तरफ इंदिरा गांधी थी तो विपक्ष मे 4 पार्टी एक साथ होकर महागठबंधन बनाकर उनके खिलाफ खड़ी  हुई थी। 

पहली Congress organization पार्टी थी जिनमे मोरारजी देसाई, के. कामराज और अन्य  नेता थे।

  दूसरी पार्टी थी स्वंतत्र पार्टी जिनमे चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जैसे अन्य नेता थे तीसरी भारतीय जनसंघ पार्टी थी जिनमे बलराज मधो जैसे नेता थे। चौथे थी संयुक्त socialist पार्टी जिनमे जॉर्ज फ़र्नान्डिस जैसे नेता थे। जितने भी राजा महाराजा थे वे  ज्यादातर स्वतन्त्र पार्टी के साथ थे। अंततः चुनाव हुआ 352 सीटो के साथ इंदिरा गांधी चुनाव जीती उनकी छवि एक दमदार नेता के रूप मे निखरकर सामने आ रही थी।

PM  बनते ही उनके सामने सबसे बड़ा संकट क्या था

 जब इंदिरा गांधी प्रधान मंत्री बनी तो उनके सामने सबसे बड़ा संकट Bangladesh का था। Pakistan जब बना तब उसके 2 हिस्से थे एक पश्चिमी पाकिस्तान और दूसरा पूर्वी पाकिस्तान था ।

जिन्ना साहब का कहना था कि एक धर्म को मानने वाला एक देश होना चाहिए उन्होने उर्दू भाषा को पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा बनाना चाहा उधर बांग्लादेश मे विरोध होने लगा उनका कहना है कि हम बंगाली बोलते है और उसी के साथ हम आगे बढ़ेगे। 

1970 तक पाकिस्तान मे चुनाव नही हुआ 1970  मे याहिया खान वहाँ के सैनिक ताना शाह थे उन्होने अब पाकिस्तान मे पहला आम चुनाव कराने का सोच लिया था। 

पाकिस्तान पीपल्स पार्टी थी उसके सबसे लोकप्रिय नेता जुल्फीकार अली भुट्टों थे इनकी बेटी बेनजीर भुट्टों थी और बेनजीर भुट्टों का बेटा बेलावल भुट्टो था। 

पूर्वी पाकिस्तान मे आबादी ज्यादा होने के कारण सीट ज्यादा थी। याहया खान को लगता था कि चुनाव मे जीत जुल्फीकार अली भुट्टो की होगी और जीत के बाद मै राष्ट्रपति

बन जाऊँगा। लेकिन पूर्वी पाकिस्तान जिनके नेता 

शेख मुजीबुर्रहमान थे । इनकी इतनी लोकप्रियता थी कि लोग इन्हे बंग बन्धु कहते थे।  इन्हे father of Bangladesh कहा जाता था।

इनका चुनावी वायदा था कि हम बंग्ला भाषा को महत्व देगे और लोगो को मूल अधिकार देगे। 

ईलेक्शन हुआ पूर्वी पाकिस्तान के 99% सीटो पर मुजीबुर्रहमान का कब्जा हुआ। 300 मे से 160 सीटे जीत गई। अब पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान दोनो जगह मुजीबुर्रहमान का कब्जा हो गया।

बाद मे जुल्फीकार अली भुट्टो और याहया खान अलग अलग यात्रा पर पूर्वी पाकिस्तान गये शेख मुजीबुर्रहमान को समझाने लेकिन शेख मुजीबुर्रहमान नही माने। याहया खान ने उस साल National assembely की मीटिंग नही बुलाई और अंत मे घोषणा कर दिया कि जुल्फीकार अली भुट्टों ही प्रधान-मंत्री रहेगे। इसको सुनकर शेख साहब ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की शुरुआत। इसके 2-3 दिन बाद शेख ने स्वतंत्र बंग्लादेश की घोषणा कर दी। 

25 मार्च 1971 याहिया खान ने सेना से कहा कि सविनय अवज्ञा आन्दोलन मे आन्दोलन कर रहे आंदोलनकारियों को कुचल दो। अमेरिका , चीन और पाकिस्तान तीनो एक हो गये थे फ़िर सोवियत संघ (USSR ) भारत  के साथ मित्रता का हाथ बढ़ाया और 3 दिसंबर को याहिया खान ने मुजीबुर्रहमान को अगवा कर लिया और पश्चिमी पाकिस्तान मे कही कैद कर लिया। युद्ध का माहौल बन चुका था इंदिरा 

गांधी ने युद्ध के लिये सेना तैयार कर दी थी दोनो तरफ से युद्ध की तैयारी  हो गयी थी। 3 दिसंबर को याहिया खान ने गलती कर दी आपने बहुत सारे हवाई जहाज भेज दिये ।  जनरल अरोड़ा हमारे पूर्वी कमांड के हेड थे उन्होने युद्ध शुरु किया 3 दिसंबर को युद्ध शुरु हुआ 6 दिसंबर को भारत ने स्वतन्त्र बांग्लादेश को मान्यता प्रदान कर दी । 

13 दिसंबर को पूरा ढ़ाँका हमने घेर लिया 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने आत्मसमर्पण कर लिया 93000 सैनिक हमारे कब्जे मे थे। उसके 10 दिन बाद शेख मुजीबुर्रहमान को छोड़ा गया जो दिल्ली मे इंदिरा गाँधी से मिलते हुए गये।

1971-1972 मे इंदिरा गांधी ने क्या क्या किया

इस समय तक आते आते इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता हद से ज्यादा बढ़ गयी थी हर तरफ उनकी ही लहर थी। 1972 मे 13 राज्यो मे विधानसभा चुनाव हुआ और 13 राज्यो मे कांग्रेस की सरकार बनी। इंदिरा गाँधी की लोकप्रियता देख कर अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा की हर सीट पर विपक्ष पर हजारो नेता खडे थे लेकिन कांग्रेस की तरफ से सिर्फ एक चेहरा था वो था इंदिरा गाँधी का। इसी समय इंदिरा गाँधी ने संविधान मे लगातार परिवर्तन करवाये। अनुच्छेद 24 से 31 तक परिवर्तन हुए जो इस प्रकार है- 

अनुच्छेद 24 संसद के पास ये शक्ति नही की वो संविधान के मूल आधार को बदल दे।

अनुच्छेद 25 सरकार लोगो की सम्पत्ति केवल सरकारी काम के लिये ले सकती है और उसकी शर्ते ये होगी की सम्पत्ति पूरी कानूनी प्रक्रिया के साथ ली जायेगी और सम्पत्ति की कीमत सरकार अपने हिसाब से तय करेगी।

अनुच्छेद 26 privy purse को खत्म कर दिया।

अनुच्छेद 27 North  East Re- origination act लेकर आई।

अनुच्छेद 28 ICS के अधिकारी को मिलने वाली सारी सेवाओ और सुविधाओं को खत्म कर दिया। 

अनुच्छेद 29 kerala land reform bill लेकर आई।

अनुच्छेद 30 इसके अन्तर्गत सुप्रीम कोर्ट की शक्तियाँ कम कर दी गई।

अनुच्छेद 31 लोकसभा मे सीट 525 से 545 कर दी गई।


युद्ध के बाद 1973 से 1974 मे स्थितियाँ कैसी थी

युद्ध  के बाद लगभग 1 करोड़ लोग बांग्लादेश से भारत आये थे तो उनके भोजन की व्यवस्था करना था, युद्ध की वजह से economy ही हालत खराब हो गई थी , पैसे की काफी दिक्कत हो रही थी।

Oil crisis हो गई थी, उसी साल आकाल और सूखा भी पड़ गया था, गरीबी भी काफी बढ़ गई थी, महंगाई 20% ज्यादा बढ़ गई थी। ऐसी काफी सारी समस्याएं भारत को झेलनी पड़ीं। 

1973 के अंत मे गुजरात मे आन्दोलन हुआ जिसका नेतृत्व मोरारजी देसाई कर रहे थे और देसाई जी के नेतृत्व मे ही गुजरात की विधानसभा भंग कर दी गई थी।

और उसी समय बिहार मे भी जन आंदोलन हुआ जिसका नेतृत्व जय प्रकाश नारायण जी कर रहे थे। और उसी समय रेलवे की हड़ताल भी चल रही थी जिसका नेतृत्व जॉर्ज फर्नांडीज कर रहे थे।

18 मई 1974 को पोखरण मे नाभिकीय परीक्षण हुआ जिसे smiling buddha नाम दिया गया।

1974 मे राष्ट्रपति का चुनाव होना था पूरी की पूरी बहुमत इन्दिरा जी के पास था चुनाव के लिये जिनका नाम सामने आया उनमे थे बाबू जगजीवन राय और सरदार स्वर्ण सिंह लेकिन अंत मे इंदिरा गांधी को अपने अनुसार एक तीसरा नाम मिला जो था फखरुद्दीन अली अहमद। कांग्रेस की तरफ से फखरुद्दीन अली अहमद चुनाव मे खड़े हुए और चुनाव जीत गये। 

चूँकि गुजरात की विधानसभा भंग थी इसलिए वहाँ की जनता ने इसका विरोध किया कि हमारा हक बनता है कि हम भी राष्ट्रपति चुनाव मे हिस्सा ले, लेकिन बाद मे मामला सुप्रीम कोर्ट मे पहुँचा कोर्ट की 5 जजो की बैठक ने यह फ़ैसला लिया कि अगर राष्ट्रपति चुनाव के समय किसी राज्य की विधानसभा भंग रह्ती है तो भी राष्ट्रपति चुनाव नही टाला जायेगा।

 सनं 1975 मे इंदिरा गांधी के साथ कैसी घटना घटी

गुजरात , बिहार के अलावा दिल्ली मे भी बड़े आन्दोलन की तैयारी चल रही थी

12 जून 1975 को 3 घटना हुई

सबसे पहला उनके सहयोगी D.P. Dhar की सुबह सुबह मृत्यु हो गई।

दोपहर होते होते गुजरात विधानसभा का परिणाम आना शुरु हुआ जिसमे कांग्रेस को 75 सीटे और अन्य पार्टीयो को 88 सीटे मिली।

शाम को जो कुछ भी हुआ वो इंदिरा गांधी के लिये अत्यन्त कठोर था तो हुआ यूँ की 1971 के चुनाव मे इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव जीती थी इनके विरोध मे रायबहादुर नारायण खड़े थे। चुनाव हारने के बाद रायबहादुर ने allahabad high court मे election petition दायर कर दी थी कि election गलत हुआ है इसमे गलत साधनो का प्रयोग किया गया है। इस petition मे इंदिरा जी के ऊपर 14 आरोप लगे थे। इस सुनवाई के जज जगमोहन लाल सिंह थे जो लम्बे समय तक बरेली मे वकील थे बाद मे Allahabad high court के जज बन गये।

इन 14 आरोपो मे से 12 आरोप गलत साबित हुआ लेकिन 2 आरोप सही माने गये जो इस प्रकार है-

पहला ये कि यशपाल कपूर इंदिरा जी के चुनाव प्रभारी थे और ये एक सरकारी ऐजेंट थे हुआ यूँ इन्होने 7 जनवरी 1971 को इंदिरा जी का काम सम्भाल लिया था जबकि अपने सरकारी ऐजेंट पद से इस्तीफा दिया 13 जनवरी 1971 को यानी 6 दिन ये नौकरी करते हुए इन्दिरा जी के चुनाव प्रभारी बने रहे जो की गलत काम है।

दूसरा आरोप ये था कि जब इंदिरा जी प्रचार करने Allahabad आई तो मंच ऊँचा बना था और इसको बनवाने मे सरकारी कर्मचारीयो ने मदद की थी मतलब की चुनाव जीतने मे सरकारी कर्मचारीयो का फायदा उठाया गया।

       तो सुनवाई के बाद जगमोहन लाल सिन्हा ने सजा के तौर पर फ़ैसला ये सुनाया कि इंदिरा गाँधी जी ने Allahabad सीट से चुनाव जीती ही नही थी और 6 साल तक वो कोई भी चुनाव नही लड़ सकती है। और 20 दिनो के अन्दर इनकी पार्टी ये फ़ैसला ले की प्रधान-मंत्री किसे बनाना है और अगर इंदिरा गांधी चाहे तो सुप्रीम कोर्ट मे अपील कर सकती है।

20 जून को इंदिरा गांधी ने रैली की जिसमे 10 लाख लोगो की भीड़ जुटी  भावुक होकर इंदिरा जी ने लोगो से कहा कि देश खतरे मे है 

22 जून को विपक्षी पार्टी ने भी रैली की भारी बारिश की वजह से V.P. सिंह बिहार से नही आ पाये तो मोरारजी देसाई ने लोगो को सम्बोधित किया।

23 जून को फ़ैसला आया की जब तक फाइनल judgement नही आता इंदिरा गाँधी PM बनी रह सकती है लेकिन सदन की कार्यवाही मे भाग नही ले सकती। 

25 june 1975 को क्या क्या हुआ था

इस दिन सुबह सुबह जयप्रकाश नारायण जी ने रैली की जिसमे उन्होने लोगो से कहा की आप ऐसी पार्टी को support मत कीजिये जो संविधान को नही मानता।

 शाम मे इंदिरा गाँधी जी ने अपने नेताओ से मुलाकात की उन्होने अपने सलाहकार से कोई उपाय निकालने को कहा काफी सोचने के बाद सिद्धांत शंकर राय ने कहा कि अनुच्छेद 352 का प्रयोग करके पूरे देश मे Internal Emergency लगा दीजिये। काफी देर बात करने के बाद दोनो राष्ट्रपति के पास गये बात चीत हुई अंत मे राष्ट्रपति ने कहा की आप emergency order ले कर आइये हम हस्ताक्षर कर देते है।

Emergency का फ़ाइनल order लेकर रात को R.K. dhavan जी को भेजा गया राष्ट्रपति ने अपने कहे अनुसार उस पर हस्ताक्षर कर दिया।

सुबह होते होते सारे विपक्षी नेताओ को जेल मे डाल दिया गया जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई को हरियाणा मे एक अतिथि ग्रह नजरबंद कर दिया गया।

26 जून सुबह 6 बजे के करीब कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गई 8 कैबिनेट के मंत्री उस मीटिंग मे मौजूद थे। मीटिंग शुरु होने से पहले ही इंदिरा गांधी जी ने उन्हे गिरफ़्तार हुए नेताओ की सूची और emergency की notice पकड़ा दी। सिर्फ स्वर्ण सिंह ने एक सवाल किया की गिरफ्तारी किस कनून के तहत हो रही है , इंदिरा गाँधी ने कहा की MISA ( maintaince of internal security act) के तहत गिरफ्तारी हुई है।

 उसी दिन संजय गाँधी ने इन्द्र कुमार गुजराल को सूचना प्रशारण मंत्री से हटाकर विद्या चरण शुक्ला को सूचना प्रशारण मंत्री बना दिया।

जयप्रकाश नारायण की तबीयत खराब की वजह से उन्हे रिहा कर दिया गया था। 

Emergency के दौरान इंदिरा गाँधी ने क्या क्या किया

इस दौरान इन्दिरा जी ने 38 वाँ और 39 वाँ संविधान कर दिया।

21 जुलाई को ही emergency के notice को राज्यसभा और लोकसभा से पारित करवा दिया लोकसभा मे 336 लोग समर्थन मे थे और राज्यसभा मे 136 लोग समर्थन मे थे।

7 नवंबर 1975 को सुप्रीम कोर्ट मे इंदिरा जी की अगली सुनवाई हुई। इंदिरा जी के वकील ने कहा की आप इस केस की सुनवाई नही कर सकते क्योकिं बीते कुछ दिनो पहले 39वाँ संविधान संसोधन करके उसे 9th shedule मे डाल दिया गया है और 9th shedule मे डाले गये कानून की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट नही कर सकता अंत मे फ़ैसला हुआ कि अब इस केस की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट नही कर सकता इसलिये Allahabad high court ने जो भी फ़ैसला सुनाया था उसे रद्द किया जाता है।

   इस तरह से इंदिरा गांधी जी ने मनमानी तरीके से हर काम करती रही और भारत मे 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक 21 महीने तक Emergency लगी थी

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